Friday, December 25, 2009

कविता

कविता
असमर्पित उन्माद

निमिष झा

अहाँक वएह नयन, वएह मोन आ वएह तन
हम देखिरहल छी, सुनिरहल छी आ भोगिरहल छी
समयक लम्बा अन्तरालक बाद सेहो
आँखि खोलैत आ मिचैत सेहो
आ अहाँ हमर शरीरक अदृश्य सरित प्रवाहमे
र्सवाङ्ग समाहित छ, सज्जित छी ।र्
र्
इ अभीष्ट रूप अहीँक थिक
जकर अनुपस्थितिमे हमर चित्त
शुष्क सिकतातुल्य भ˜ गेल अछिर्
इ शीतल छाहरि अहीँक थिक
जकर अभावमे
हरेक निमिष हमरा लेल
नीरस आ उदास वसन्त बनि गेल अछि ।


अहाँ पनि छी हमर पियासक
अहाँ वसन्त छी हमर बतासक
तएँ एकटा अतृप्त उन्माद
नाचिरहल अछि भैरव बनि
हमर मानसमे ।


हमर स्नायुक रोब-रोबमे
एकटा विषाक्त तृष्णा
बहिरहल अछि
आ बहिरहल अछि
हमर धमनीक कण-कणमे
एकटा उन्मुक्त तृषा ।

बहुत बेर उघारि दलियै, फारि देलियै
नृशंस बनि आवेशसँ
लज्जाक पर्दासब
आ बन्द क˜ देलियै नैतिक मूल्यसँ
पाशविक उन्मादसब ।


हँ !
आईयो ओहिना स्मृतिमे लटपटायल अछि
अहाँक गरम साँसमे
गुञ्जित हमर जीवन सङ्गीत
अहाँक आँचरमे ओझरायल हमर र्सटक बट्टम
अनार जकाँ अहाँक दाँत पर
पिछरैत हमर जीह
अहाँक ब्लाउजक हुकसँग खेलैत
हमर दसो आँगुर
आ अहाँक सुन्दर छाल पर
दौडÞैत हमर ठोर ।

तथापि किएक नहि मिझाइत अछि
छातिकर् इ उन्मत्त मोमबत्ति
किएक निष्काम नहि होइत अछि
मोनक उत्तप्त बोखारसब
जेना अहाँ
दारुक प्याला होई
आ हम चुस्की ल˜ रहल छी
मदहोस भ˜ रहल छी
अहाँक स्वप्निल लज्जानत तनमे
निमिष निमिषमे ।


मुदा उफ र्!र्
इ केहन विडम्बना !
नित्यशः
एक्केटा विन्दू पर दर्ुघटना होइत गेल
हमर उच्छृङ्खल वासनासब
अहाँक दर्शन आ सिद्धान्तक शिखरसँ
नितदिन एक्के रस्ता घुरि जाइत छल
अभिशप्त अहाँक विचार
हमर अभिशून्य मस्तिष्कके झकझोरैत छल ।


शायद कमजोरी हमरा मे छल
कि गिद्ध बनि हम युद्ध नहि क˜ सकलौं अहाँक तनसँ
शायद महानता अहाँक छल
माला बनि अहाँ समर्पित नहि भ˜ सकलौं हमर गलासँ ।


कविता
जीवन एकटा दुरुह कविता
र्
अर्थहीन शब्दकर्
अर्थ खोजबाक अभिलिप्सामे
अनायास थमि जाइत अछि आँखि
फारि दैति छियै
पन्नाक पन्ना
चेतनाक शब्दकोश
आ भोगैत छी
एकटा पराजयक थकान
जत्त नहि भेटैत छै
जीवनक यर्थाथक अर्थ
आ तएँ
बुझाइत अछि
जीवन एकटा दुरुह कविता छै ।

बजैत छै
लयात्मक गीत
जीवनक मधुर सङ्गीत
आ छम...छम...क˜ नचैत सङ्गीतसँग
असंख्य कलात्मक पएर
आ प्रस्फुटित भ˜ जाइत छै जीवन उपवनमे
मुदा
अनायास फेर
बन्द भ˜ जाइत छै सङ्गीतक धुन
थाकि जाइत छै पएर
मुरझा जाइत छै उपवनक फूल
आ तएँ
बुझाइत अछि
जीवन एकटा सारहीन सङ्गीत छै ।

आन्नद छै
माछ जकाँ
जीवन सरोबरमे हेलब
उल्लास छै
एकटा गुड्ड िजकाँ
आकाशमे उडÞब
मुदा उडिÞ नहि सकैत अछि
हमर आल्हादित मोन
आ अनायास
उल्लासक धरातलसँ
दर्ुगतिक चट्टान पर
अनवरत खसैत छै मोन
आ डुबि जाइत छै
सरोबरमे
आ तएँ
बुझाइत अछि
गुड्ड िजकाँ उडिÞ नहि सकबाक
आ माछ जकाँ
हेल˜ नहि सकबाक
नियतिक भोग छै
जीवन ।

मैथिलीक युगद्रष्टो

मैथिलीक युगद्रष्टो

निमिष झा



कोनो साहित्यमे किछ साहित्यकारसभ एहन होइत छथि जिनकर जन्म कोनो घटनाक
रूपमे होइत अछि आ ओहि घटनासँ सम्बन्धित सम्पर्ूण्ा साहित्य प्रभावित भ˜ जाइत
अछि । ओहन साहित्यकारक साहित्यिक व्यक्तित्व ओहि साहित्यक र्सवाङ्गीण
विकासमे वरदानसिद्ध होइत
अछि । ओहन साहित्यिक महापुरुष पर्ूववर्ती साहित्यिक परम्परा आदिक सम्यक
अनुशीलन पश्चात अपन मान्यता एवम साहित्यिक योजना निर्दिष्ट करैत छथि । अपन
कार्यसभक माध्यमसँ युगान्तकारी आ प्रभावशाली रेखा निर्माण क˜ अमरत्व प्राप्त
करैत छथि ।

मैथिली साहित्यक इतिहासमे विद्यापति एकटा एहने अतुलनीय प्रतिभाक नाम अछि ।
सम्पर्ूण्ा मैथिली साहित्य हुनकासँ प्रभावित अछि । हुनकर प्रभाव रेखाकेँ क्षीण
करबाक साहित्यिक क्षमता भेल व्यक्ति मैथिली साहित्यक इतिहासमे अखन धरि किओ
नहि अछि । विद्यापति मैथिली साहित्यक र्सवश्रेष्ठ कवि छथि । हुनकेमे मैथिली
साहित्यक सम्पर्ूण्ा गौरव आधारित अछि ।

इतिहासकार दर्ुगानाथ झा 'श्रीश'क शब्दमे विद्यापति आधुनिक भारतीय भाषाक प्रथम
कवि छथि । ओ संस्कृत साहित्यक अभेद्य किलाकेँ दृढÞतापर्ूवक तोडिÞ भाषामे
काव्य रचना करबाक साहस कयलनि । हुनकरे आदर्शसँ अनुप्रेरित भ˜ शङ्करदेव,
चण्डीदास, रामानन्द राय, कवीर, तुलसीदास, मीरावाई, सुरदास सनक महान
स्रष्टासभ अपन भक्ति भावनाक माध्यमसँ अपन मातृ भाषाकेँ समृद्ध कयलनि ।

मैथिली साहित्यमे विद्यापति युग ओतबे महत्वपर्ूण्ा अछि जतबे अङ्ग्रेजी
साहित्यमे शेक्सपियर युग, नेपाली साहित्यमे भानुभक्त युग, बङ्गालीमे रवीन्द्र
युग तथा हिन्दीमे भारतेन्दु
युग । विद्यापतिक रचनासभमे मिथिला पहिल बेर अपन वैशिष्टय भक्तिभावना,
शृङ्गगारिक सरसता एवम् मौलिक साङ्गीतिक लय प्रस्फुटित भेल आभाष कयलक अछि
। ओकर बाद विद्यापतिक पदावलीसभ जनजनक स्वर बनि सकल त˜ मिथिलामे युगोसँ
व्याप्त असमानताक अन्त करैत विद्यापतिक रचनासभ समान रूपसँ लोकस्वरक रूप ग्रहण क˜
सकल ।

वास्तवमे विद्यापति युगद्रष्टा रहथि । ओ मैथिली साहित्यक श्रीवृद्धिक लेल अथक
प्रयास मात्र नहि कयलनि, तत्कालीन समयमे पतनोन्मुख मैथिल समाजक पुनर्संरचनाक
लेल सेहो मद्दत पहुँचौलनि । विद्यापतिक प्रादर्ुभावक समयमे भारतीय उपमहाद्वीपक
प्रायः हरेक भागक सभ्यता आ संस्कृति सङकटपर्ूण्ा अवस्थामे छल । मुसलमानी
शासकसभक आतङक चरमोत्कर्षे रहल ओहि समयमे मैथिल संस्कृतिक रक्षा आवश्यक
भ˜ गेल छल । ओहन अवस्थामे विद्यापतिक आगमन मैथिली साहित्य आ संस्कृतिक
विकासक लेल महत्वपर्ूण्ा वरदान सिद्ध
भेल । एक दिस मुसलमानी शासकसभक आक्रमण आ दोसर दिस बौद्ध धर्मक बढÞैत
प्रभावक कारण समाजमे सिर्जित वैराग्यक मनस्थितिसँ आक्रान्त मैथिल सभ्यता आ
संस्कृति अपन उन्नयनक रूपमे सेहो विद्यापतिकेँ प्राप्त क˜ अपन मौलिकता बचाबयमे
सक्षम भेल ।

विद्यापति अपन विविध रचनासभक माध्यमसँ सामाजिक पुनर्संगठनक प्रक्रियाकेँ बल
देलनि । ओ समाजसँ पलायन भ˜ रहल मैथिल युवासभकेँ समाज निर्माणक मूल
धारामे प्रभावित करएबाक लेल अथक प्रयास सेहो कयलनि । हुनकर एहने प्रयासक
उपज अछि शृङ्गगारिक रचना
सभ । मुसलमानसभक आक्रमणसँ पीडित आ पलायन भ˜ रहल तत्कालीन मिथिलाक
युवासभकेँ मुसलमान विरुद्ध प्रयोग क˜ मिथिलाक अस्तित्व रक्षा करबाक लेल
विद्यापतिकर् इ रचनासभ सहयोगी प्रमाणित भेल ।

तत्कालीन समयक लेल विद्यापतिक अहि प्रकारक चातर्ुयकेँ कुटनीतिक सफलताक रूपमे
देखल जा सकैया ।

समाजमे व्याप्त असमानाता, कुरीति, अन्धविश्वास सहित विभिन्न विसङगतिसकेँ मानव
प्रेम एवम भाषा उत्थानक भरमे विद्यापति अन्त करबाक काजमे सफल छथि ।

विद्यापतिक सम्पर्ूण्ा रचनासभ शृङ्गगार आ भक्ति रससँ ओतप्रोत अछि । कतेको
विद्वानसभ विश्व साहित्यमे विद्यापतिसँ दोसर पैघ शृङ्गगारिक कवि आन किओ नहि
रहल कहैत छथि ।

महाकवि विद्यापति तत्कालीन समाजमे प्रचलित संस्कृत, अवहठ्ठ आ मैथिली भाषाक
ज्ञाता छलथि र्।र् इ तीनु भाषामे प्राप्त रचनासभ अहि बातकेँ प्रमाणित करैत अछि


यद्यपी विद्यापतिक जन्म तथा मृत्युक सम्बन्धमे विभिन्न विद्वानसभक विभिन्न मत अछि ।
तथापि मिथिला महाराज शिव सिंहसँ ओ दू वर्ष जेष्ठ रहथि । अहि तथ्यक आधार
पर विद्वानसभ हुनकर जन्म तिथिकेँ आधिकारिक मानैत छथि । कवि चन्दा झा
विद्यापतिद्वारा रचित पुरुष परीक्षाक आधार पर विद्यापति राजा शिव सिंहसँ दू
वर्षपैघ रहथि उल्लेख कयने छथि । जर्ँर् इ तथ्यकेँ मानल जायत˜ सन् १४०२ मे
राज्यारोहणक समयमे राजा शिव सिंहक उमेर ५० वर्षछल आ विद्यापति ५२ वर्ष
रहथि । अहि आधार पर विद्यापतिक जन्म सन् १३५० मे भेल निश्चित अछि ।

डा.सुभद्र झा, प्रो. रमानाथ झा, पं. शशिनाथ झा आदि विद्वानसभर् इ मतकेँ
स्वीकार करैत छथि मुदा डा.उमेश मिश्र, डा.जयमन्त मिश्र सहितक विद्वानसभ विद्यापतिक
जन्म सन् १३६० मे भेल कहैत छथि ।

अहिना विद्यापतिक मृत्यु प्रसङ्गमे सेहो एक मत नहि
अछि । अपन मृत्युक सम्बन्धमे मृत्यु पर्ूव विद्यापति स्वयंद्वारा रचित पद विद्यापतिक
आयु अवसान कात्तिक धवल त्रयोदशी जानेकेँ तुलनात्मक रूपमे अन्य मत सभसँ
अपेक्षाकृत युक्ति संगत मानल गेल अछि । मुदा अहिसँ वर्ष निरुपण नहि भेल
अछि ।

विद्यापतिक जन्म हाल भारतक बिहार राज्यक मधुवनि जिल्ला अर्न्तर्गत बिसफी गाममे
भेल छल र्।र् इ मधुवनी दरभङ्गा रेल्वे लाइनक कमतौल स्टेसन लग अवस्थित अछि । हिनक
पिताक नाम गणपति ठाकुर आ माताक नाम गंगादेवी रहनि । हाल विद्यापतिक
वंशजसभ सौराठमे रहति छथि ।

विद्यापति बालके कालसँ कुशाग्र वुद्धिक अलौकिक प्रतिभाक रहथि । अपन विद्वान
पिताक सर्म्पर्कमे ओ प्रारम्भिक शिक्षा ग्रहण
कयलनि । मुदा औपचारिक रूपमे प्रकाण्ड विद्वान हरि मिश्रसँ शिक्षा ग्रहण कयलनि ।
तहिना प्रकाण्ड विद्वान पक्षधर मिश्र विद्यापतिक सहपाठी रहनि । विद्यापति मैथिली
साहित्यक धरोहर मात्र नहि भ˜ संस्कृतक सेहो प्रकाण्ड विद्वान
रहथि । ओ मैथिली आ अवहठ्ठक अतिरिक्त संस्कृतमे सेहो अनेको रचना कयने
रहथि । हुनकर रचनासभकेँ तीन भागमे वर्गीकरण कयल जाइत अछि ।

क) संस्कृत ग्रन्थ ः भू-परिक्रमा, पुरुष परीक्षा, शैवर्सवस्वसार, शैवर्सवस्वसार
प्रमाणभूत, लिखनावली, गङ्गा वाक्यावली, विभागरि, दान वाक्यावली, गया पत्तलक,
दर्ुगाभक्ति तरङ्िगणी, मणिमञ्जरी, वर्ष व्रत्य, व्यादिभक्ति तरङ्िगणी ।

ख) अवहठ्ठ ग्रन्थ ः कृतिलता, कृतिपताका

ग) मैथिली ग्रन्थ ः गोरक्ष विजय

हाइकु

-१)
दुःखको नासो
अलङ्कार बनी
सज्जित प्राण ।

-२)
ऋतु विशेष
अपर्ूव तर्ीथयात्रा
ऊसर मन ।

-३)
जिउनलाई
उपहार हो आँसु
पिउ र हाँस ।

-४)
गुलाफ फूल
सिउँदोको सिन्दूर
तादात्मय के -

-५)
खरानी जस्तो
चिसो मौसम, तर
तिमी विलुप्त ।

-६)
जीवन नै हो
विस्मृतिका विरुद्ध
स्मृति सङ्र्घष्ा ।

बुद्ध आ आतंक

अणु बमक विस्फोटक बाद
भयाउन वातावरणमे
आत्माक शान्ति नहि खोजू ।
रक्तपातक बाद, शून्य आकाशमे
खुशीक चुम्बन नहि करू ।
ओ अहाँक भूल हैत, महाभूल
रणभूमिमे
विश्व शान्तिक नारा लगायब ।
ओ अहाँक भूल हैत
तोपक गोलामे
भातृत्वक सन्देश खोजब ।
घृणा आ स्वार्थक सागरमे
विश्व बन्धुत्वक शंखघोष किए करै छी
हिंसा आ आतंकक बीच
गौतम बुद्धक सन्देश
फिका रहत ।
अपन फुसियाएल आर्दशकेँ
बनाबटी ढोङ्ग सँ नहि झाँपू
समय बहुत आगू बढिÞ गेल अछि ।
स्वार्थी आ व्यक्तित्ववादी समाजमे
कृत्रिम आदर्शक वीजारोपण नहि करू
अहाँक आदर्श सभ
कालान्तरमे
अहीँकेँ डसिलेत ।

Monday, February 16, 2009

poem

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Wednesday, May 9, 2007

थिस इस निमिष'एस blog