मैथिलीक युगद्रष्टो
निमिष झा
कोनो साहित्यमे किछ साहित्यकारसभ एहन होइत छथि जिनकर जन्म कोनो घटनाक
रूपमे होइत अछि आ ओहि घटनासँ सम्बन्धित सम्पर्ूण्ा साहित्य प्रभावित भ˜ जाइत
अछि । ओहन साहित्यकारक साहित्यिक व्यक्तित्व ओहि साहित्यक र्सवाङ्गीण
विकासमे वरदानसिद्ध होइत
अछि । ओहन साहित्यिक महापुरुष पर्ूववर्ती साहित्यिक परम्परा आदिक सम्यक
अनुशीलन पश्चात अपन मान्यता एवम साहित्यिक योजना निर्दिष्ट करैत छथि । अपन
कार्यसभक माध्यमसँ युगान्तकारी आ प्रभावशाली रेखा निर्माण क˜ अमरत्व प्राप्त
करैत छथि ।
मैथिली साहित्यक इतिहासमे विद्यापति एकटा एहने अतुलनीय प्रतिभाक नाम अछि ।
सम्पर्ूण्ा मैथिली साहित्य हुनकासँ प्रभावित अछि । हुनकर प्रभाव रेखाकेँ क्षीण
करबाक साहित्यिक क्षमता भेल व्यक्ति मैथिली साहित्यक इतिहासमे अखन धरि किओ
नहि अछि । विद्यापति मैथिली साहित्यक र्सवश्रेष्ठ कवि छथि । हुनकेमे मैथिली
साहित्यक सम्पर्ूण्ा गौरव आधारित अछि ।
इतिहासकार दर्ुगानाथ झा 'श्रीश'क शब्दमे विद्यापति आधुनिक भारतीय भाषाक प्रथम
कवि छथि । ओ संस्कृत साहित्यक अभेद्य किलाकेँ दृढÞतापर्ूवक तोडिÞ भाषामे
काव्य रचना करबाक साहस कयलनि । हुनकरे आदर्शसँ अनुप्रेरित भ˜ शङ्करदेव,
चण्डीदास, रामानन्द राय, कवीर, तुलसीदास, मीरावाई, सुरदास सनक महान
स्रष्टासभ अपन भक्ति भावनाक माध्यमसँ अपन मातृ भाषाकेँ समृद्ध कयलनि ।
मैथिली साहित्यमे विद्यापति युग ओतबे महत्वपर्ूण्ा अछि जतबे अङ्ग्रेजी
साहित्यमे शेक्सपियर युग, नेपाली साहित्यमे भानुभक्त युग, बङ्गालीमे रवीन्द्र
युग तथा हिन्दीमे भारतेन्दु
युग । विद्यापतिक रचनासभमे मिथिला पहिल बेर अपन वैशिष्टय भक्तिभावना,
शृङ्गगारिक सरसता एवम् मौलिक साङ्गीतिक लय प्रस्फुटित भेल आभाष कयलक अछि
। ओकर बाद विद्यापतिक पदावलीसभ जनजनक स्वर बनि सकल त˜ मिथिलामे युगोसँ
व्याप्त असमानताक अन्त करैत विद्यापतिक रचनासभ समान रूपसँ लोकस्वरक रूप ग्रहण क˜
सकल ।
वास्तवमे विद्यापति युगद्रष्टा रहथि । ओ मैथिली साहित्यक श्रीवृद्धिक लेल अथक
प्रयास मात्र नहि कयलनि, तत्कालीन समयमे पतनोन्मुख मैथिल समाजक पुनर्संरचनाक
लेल सेहो मद्दत पहुँचौलनि । विद्यापतिक प्रादर्ुभावक समयमे भारतीय उपमहाद्वीपक
प्रायः हरेक भागक सभ्यता आ संस्कृति सङकटपर्ूण्ा अवस्थामे छल । मुसलमानी
शासकसभक आतङक चरमोत्कर्षे रहल ओहि समयमे मैथिल संस्कृतिक रक्षा आवश्यक
भ˜ गेल छल । ओहन अवस्थामे विद्यापतिक आगमन मैथिली साहित्य आ संस्कृतिक
विकासक लेल महत्वपर्ूण्ा वरदान सिद्ध
भेल । एक दिस मुसलमानी शासकसभक आक्रमण आ दोसर दिस बौद्ध धर्मक बढÞैत
प्रभावक कारण समाजमे सिर्जित वैराग्यक मनस्थितिसँ आक्रान्त मैथिल सभ्यता आ
संस्कृति अपन उन्नयनक रूपमे सेहो विद्यापतिकेँ प्राप्त क˜ अपन मौलिकता बचाबयमे
सक्षम भेल ।
विद्यापति अपन विविध रचनासभक माध्यमसँ सामाजिक पुनर्संगठनक प्रक्रियाकेँ बल
देलनि । ओ समाजसँ पलायन भ˜ रहल मैथिल युवासभकेँ समाज निर्माणक मूल
धारामे प्रभावित करएबाक लेल अथक प्रयास सेहो कयलनि । हुनकर एहने प्रयासक
उपज अछि शृङ्गगारिक रचना
सभ । मुसलमानसभक आक्रमणसँ पीडित आ पलायन भ˜ रहल तत्कालीन मिथिलाक
युवासभकेँ मुसलमान विरुद्ध प्रयोग क˜ मिथिलाक अस्तित्व रक्षा करबाक लेल
विद्यापतिकर् इ रचनासभ सहयोगी प्रमाणित भेल ।
तत्कालीन समयक लेल विद्यापतिक अहि प्रकारक चातर्ुयकेँ कुटनीतिक सफलताक रूपमे
देखल जा सकैया ।
समाजमे व्याप्त असमानाता, कुरीति, अन्धविश्वास सहित विभिन्न विसङगतिसकेँ मानव
प्रेम एवम भाषा उत्थानक भरमे विद्यापति अन्त करबाक काजमे सफल छथि ।
विद्यापतिक सम्पर्ूण्ा रचनासभ शृङ्गगार आ भक्ति रससँ ओतप्रोत अछि । कतेको
विद्वानसभ विश्व साहित्यमे विद्यापतिसँ दोसर पैघ शृङ्गगारिक कवि आन किओ नहि
रहल कहैत छथि ।
महाकवि विद्यापति तत्कालीन समाजमे प्रचलित संस्कृत, अवहठ्ठ आ मैथिली भाषाक
ज्ञाता छलथि र्।र् इ तीनु भाषामे प्राप्त रचनासभ अहि बातकेँ प्रमाणित करैत अछि
।
यद्यपी विद्यापतिक जन्म तथा मृत्युक सम्बन्धमे विभिन्न विद्वानसभक विभिन्न मत अछि ।
तथापि मिथिला महाराज शिव सिंहसँ ओ दू वर्ष जेष्ठ रहथि । अहि तथ्यक आधार
पर विद्वानसभ हुनकर जन्म तिथिकेँ आधिकारिक मानैत छथि । कवि चन्दा झा
विद्यापतिद्वारा रचित पुरुष परीक्षाक आधार पर विद्यापति राजा शिव सिंहसँ दू
वर्षपैघ रहथि उल्लेख कयने छथि । जर्ँर् इ तथ्यकेँ मानल जायत˜ सन् १४०२ मे
राज्यारोहणक समयमे राजा शिव सिंहक उमेर ५० वर्षछल आ विद्यापति ५२ वर्ष
रहथि । अहि आधार पर विद्यापतिक जन्म सन् १३५० मे भेल निश्चित अछि ।
डा.सुभद्र झा, प्रो. रमानाथ झा, पं. शशिनाथ झा आदि विद्वानसभर् इ मतकेँ
स्वीकार करैत छथि मुदा डा.उमेश मिश्र, डा.जयमन्त मिश्र सहितक विद्वानसभ विद्यापतिक
जन्म सन् १३६० मे भेल कहैत छथि ।
अहिना विद्यापतिक मृत्यु प्रसङ्गमे सेहो एक मत नहि
अछि । अपन मृत्युक सम्बन्धमे मृत्यु पर्ूव विद्यापति स्वयंद्वारा रचित पद विद्यापतिक
आयु अवसान कात्तिक धवल त्रयोदशी जानेकेँ तुलनात्मक रूपमे अन्य मत सभसँ
अपेक्षाकृत युक्ति संगत मानल गेल अछि । मुदा अहिसँ वर्ष निरुपण नहि भेल
अछि ।
विद्यापतिक जन्म हाल भारतक बिहार राज्यक मधुवनि जिल्ला अर्न्तर्गत बिसफी गाममे
भेल छल र्।र् इ मधुवनी दरभङ्गा रेल्वे लाइनक कमतौल स्टेसन लग अवस्थित अछि । हिनक
पिताक नाम गणपति ठाकुर आ माताक नाम गंगादेवी रहनि । हाल विद्यापतिक
वंशजसभ सौराठमे रहति छथि ।
विद्यापति बालके कालसँ कुशाग्र वुद्धिक अलौकिक प्रतिभाक रहथि । अपन विद्वान
पिताक सर्म्पर्कमे ओ प्रारम्भिक शिक्षा ग्रहण
कयलनि । मुदा औपचारिक रूपमे प्रकाण्ड विद्वान हरि मिश्रसँ शिक्षा ग्रहण कयलनि ।
तहिना प्रकाण्ड विद्वान पक्षधर मिश्र विद्यापतिक सहपाठी रहनि । विद्यापति मैथिली
साहित्यक धरोहर मात्र नहि भ˜ संस्कृतक सेहो प्रकाण्ड विद्वान
रहथि । ओ मैथिली आ अवहठ्ठक अतिरिक्त संस्कृतमे सेहो अनेको रचना कयने
रहथि । हुनकर रचनासभकेँ तीन भागमे वर्गीकरण कयल जाइत अछि ।
क) संस्कृत ग्रन्थ ः भू-परिक्रमा, पुरुष परीक्षा, शैवर्सवस्वसार, शैवर्सवस्वसार
प्रमाणभूत, लिखनावली, गङ्गा वाक्यावली, विभागरि, दान वाक्यावली, गया पत्तलक,
दर्ुगाभक्ति तरङ्िगणी, मणिमञ्जरी, वर्ष व्रत्य, व्यादिभक्ति तरङ्िगणी ।
ख) अवहठ्ठ ग्रन्थ ः कृतिलता, कृतिपताका
ग) मैथिली ग्रन्थ ः गोरक्ष विजय
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