कविता
असमर्पित उन्माद
निमिष झा
अहाँक वएह नयन, वएह मोन आ वएह तन
हम देखिरहल छी, सुनिरहल छी आ भोगिरहल छी
समयक लम्बा अन्तरालक बाद सेहो
आँखि खोलैत आ मिचैत सेहो
आ अहाँ हमर शरीरक अदृश्य सरित प्रवाहमे
र्सवाङ्ग समाहित छ, सज्जित छी ।र्
र्
इ अभीष्ट रूप अहीँक थिक
जकर अनुपस्थितिमे हमर चित्त
शुष्क सिकतातुल्य भ˜ गेल अछिर्
इ शीतल छाहरि अहीँक थिक
जकर अभावमे
हरेक निमिष हमरा लेल
नीरस आ उदास वसन्त बनि गेल अछि ।
अहाँ पनि छी हमर पियासक
अहाँ वसन्त छी हमर बतासक
तएँ एकटा अतृप्त उन्माद
नाचिरहल अछि भैरव बनि
हमर मानसमे ।
हमर स्नायुक रोब-रोबमे
एकटा विषाक्त तृष्णा
बहिरहल अछि
आ बहिरहल अछि
हमर धमनीक कण-कणमे
एकटा उन्मुक्त तृषा ।
बहुत बेर उघारि दलियै, फारि देलियै
नृशंस बनि आवेशसँ
लज्जाक पर्दासब
आ बन्द क˜ देलियै नैतिक मूल्यसँ
पाशविक उन्मादसब ।
हँ !
आईयो ओहिना स्मृतिमे लटपटायल अछि
अहाँक गरम साँसमे
गुञ्जित हमर जीवन सङ्गीत
अहाँक आँचरमे ओझरायल हमर र्सटक बट्टम
अनार जकाँ अहाँक दाँत पर
पिछरैत हमर जीह
अहाँक ब्लाउजक हुकसँग खेलैत
हमर दसो आँगुर
आ अहाँक सुन्दर छाल पर
दौडÞैत हमर ठोर ।
तथापि किएक नहि मिझाइत अछि
छातिकर् इ उन्मत्त मोमबत्ति
किएक निष्काम नहि होइत अछि
मोनक उत्तप्त बोखारसब
जेना अहाँ
दारुक प्याला होई
आ हम चुस्की ल˜ रहल छी
मदहोस भ˜ रहल छी
अहाँक स्वप्निल लज्जानत तनमे
निमिष निमिषमे ।
मुदा उफ र्!र्
इ केहन विडम्बना !
नित्यशः
एक्केटा विन्दू पर दर्ुघटना होइत गेल
हमर उच्छृङ्खल वासनासब
अहाँक दर्शन आ सिद्धान्तक शिखरसँ
नितदिन एक्के रस्ता घुरि जाइत छल
अभिशप्त अहाँक विचार
हमर अभिशून्य मस्तिष्कके झकझोरैत छल ।
शायद कमजोरी हमरा मे छल
कि गिद्ध बनि हम युद्ध नहि क˜ सकलौं अहाँक तनसँ
शायद महानता अहाँक छल
माला बनि अहाँ समर्पित नहि भ˜ सकलौं हमर गलासँ ।
कविता
जीवन एकटा दुरुह कविता
र्
अर्थहीन शब्दकर्
अर्थ खोजबाक अभिलिप्सामे
अनायास थमि जाइत अछि आँखि
फारि दैति छियै
पन्नाक पन्ना
चेतनाक शब्दकोश
आ भोगैत छी
एकटा पराजयक थकान
जत्त नहि भेटैत छै
जीवनक यर्थाथक अर्थ
आ तएँ
बुझाइत अछि
जीवन एकटा दुरुह कविता छै ।
बजैत छै
लयात्मक गीत
जीवनक मधुर सङ्गीत
आ छम...छम...क˜ नचैत सङ्गीतसँग
असंख्य कलात्मक पएर
आ प्रस्फुटित भ˜ जाइत छै जीवन उपवनमे
मुदा
अनायास फेर
बन्द भ˜ जाइत छै सङ्गीतक धुन
थाकि जाइत छै पएर
मुरझा जाइत छै उपवनक फूल
आ तएँ
बुझाइत अछि
जीवन एकटा सारहीन सङ्गीत छै ।
आन्नद छै
माछ जकाँ
जीवन सरोबरमे हेलब
उल्लास छै
एकटा गुड्ड िजकाँ
आकाशमे उडÞब
मुदा उडिÞ नहि सकैत अछि
हमर आल्हादित मोन
आ अनायास
उल्लासक धरातलसँ
दर्ुगतिक चट्टान पर
अनवरत खसैत छै मोन
आ डुबि जाइत छै
सरोबरमे
आ तएँ
बुझाइत अछि
गुड्ड िजकाँ उडिÞ नहि सकबाक
आ माछ जकाँ
हेल˜ नहि सकबाक
नियतिक भोग छै
जीवन ।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment